Indian cinema and politics : सिनेमा और राजनीति का संगम: बॉलीवुड और सत्ता का गहरा नाता

Indian cinema and politics | भारतीय राजनीति और हिंदी सिनेमा का संबंध: एक समीक्षक दृष्टिकोण

भारतीय राजनीति और हिंदी सिनेमा के बीच का संबंध दशकों पुराना और गहरा है। दोनों ही क्षेत्र भारतीय समाज में प्रमुख भूमिका निभाते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। हिंदी सिनेमा, जिसे अक्सर ‘बॉलीवुड’ कहा जाता है, न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि समाज के मुद्दों, राजनीतिक घटनाओं और सामाजिक सुधारों को भी प्रस्तुत करता है। वहीं, राजनीति भी सिनेमा के माध्यम से जनता से जुड़ने और अपने विचारों को फैलाने का एक महत्वपूर्ण मंच रही है।

भारतीय राजनीति और सिनेमा जगत

ऐतिहासिक दृष्टिहिंदी सिनेमा और राजनीति का संबंध आज का नहीं है, बल्कि आजादी से पहले और बाद के समय से ही इसका आधार रहा है। 1950 और 60 के दशक में, कई फिल्में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थीं। इस दौरान महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के विचारों से प्रेरित फिल्में बनाई गईं।

“शहीद” (1965) जैसी फिल्में भगत सिंह के बलिदान को प्रस्तुत करती हैं, जबकि “लीजेंड ऑफ भगत सिंह” (2002) ने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जुझारू नायकों को यादगार बना दिया। इन फिल्मों ने राष्ट्रवादी भावना को प्रेरित किया और लोगों में देशभक्ति का उत्साह पैदा किया। राजनीतिक हस्तियों का सिनेमा से जुड़ाव भारतीय राजनीति और हिंदी सिनेमा का सबसे स्पष्ट संबंध तब दिखता है जब राजनेता फिल्मों के माध्यम से अपनी छवि बनाने या सुधारने का प्रयास करते हैं।

उदाहरणस्वरूप, एन.टी. रामाराव (एनटीआर), जो कि दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार थे, उन्होंने फिल्मों से अपनी लोकप्रियता को राजनीति में भुनाया और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने भी सिनेमा से राजनीति में प्रवेश किया।हिंदी सिनेमा में, अमिताभ बच्चन का राजनीति में प्रवेश भी एक चर्चा का विषय रहा है। फिल्मी जगत के कई कलाकारों ने भी राजनीति में आकर सक्रिय भागीदारी निभाई है, जिनमें हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, सनी देओल,गोविंदा,राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और जया बच्चन जैसे नाम प्रमुख हैं , जिन्होंने लोकसभा एवं राज्यसभा में बतौर सांसद अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।

सिनेमा में राजनीति एक विषय

हिंदी सिनेमा में राजनीति एक महत्वपूर्ण विषय रही है। 1975 में आई फिल्म “आंधी”, जो कि इंदिरा गांधी की राजनीतिक जीवन से प्रेरित मानी जाती थी, इस बात का प्रमाण है कि कैसे सिनेमा ने राजनीतिक विषयों को उठाया। इसके बाद “सत्याग्रह” (2013), “राजनीति” (2010), “नायक” (2001) जैसी फिल्मों ने भी राजनीतिक मुद्दों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक संघर्षों को चित्रित किया। यहां तक कि कई फिल्मों में राजनीतिक भ्रष्टाचार और सत्ता की लोलुपता जैसे मुद्दों को बड़ी गंभीरता से प्रस्तुत किया गया।इसके अलावा “मदर इंडिया” (1957) जैसी फिल्मों ने भी ग्रामीण राजनीति और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर किया है।

सिनेमा का राजनीति पर प्रभाव

सिनेमा ने हमेशा से ही राजनीतिक विचारधाराओं और आंदोलनों पर प्रभाव डाला है। हिंदी सिनेमा के माध्यम से राजनीति ने कई बार अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का काम किया है। यह देखा गया है कि चुनाव के समय या किसी राजनीतिक आंदोलन के दौरान फिल्मी सितारों की भागीदारी जनता पर गहरा प्रभाव डालती है। फिल्मों के नायक-नायिकाओं की छवि उनके प्रशंसकों के दिलों में इतनी मजबूत होती है कि वे चुनाव प्रचार का हिस्सा बन जाते हैं।

राजनीतिक दल भी इस बात को समझते हैं कि सिनेमा का लोगों पर कितना प्रभाव होता है, इसलिए कई बार फिल्मी सितारों को अपने दल का चेहरा बनाने का प्रयास करते हैं। जैसे, 2019 के लोकसभा चुनाव में अक्षय कुमार की फिल्म “केसरी” और विवेक ओबेरॉय की “पीएम नरेंद्र मोदी” ने राजनीतिक प्रचार के लिए अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य

Indian cinema and politics | आज के समय में, जब सोशल मीडिया का जमाना है, राजनीति और सिनेमा के बीच का संबंध और भी मजबूत हो गया है। सोशल मीडिया पर फिल्मी सितारे और राजनेता एक ही मंच पर अपनी राय रखते हैं, जिससे जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, कई फिल्में सीधे-सीधे वर्तमान राजनीतिक स्थितियों पर आधारित होती हैं, जैसे कि “द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” (2019) और “उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक” (2019)।

Indian cinema and politics | भारतीय राजनीति और हिंदी सिनेमा का संबंध केवल एक सांस्कृतिक परिघटना नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक संवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। सिनेमा और राजनीति एक दूसरे से प्रेरित होते हैं और दोनों ही भारतीय समाज की दिशा और दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं। आने वाले समय में भी यह संबंध और मजबूत होता जाएगा, खासकर जब राजनीति और सिनेमा के किरदार समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते रहेंगे।

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