भारतीय राजनीति में जातिवाद (Casteism) एक महत्वपूर्ण और निर्णायक पहलू
भारतीय राजनीति में जाति और वर्ण व्यवस्था एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मुद्दा रहा है, आजादी के बाद भी जाति ने राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है,मगर देश का दुर्भाग्य है की आजादी के बाद जातिवाद का प्रभाव कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
सांप्रदायिकता ,जातिवाद(Casteism) और नस्लवाद को अंग्रेजों ने खुले तौर पर बढ़ावा दिया
सांप्रदायिक एवं धर्म के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की मांग को स्वीकार करके ब्रिटिशरो ने अपने शासन में नक्सलवाद और सांप्रदायिकता के बीज बोए थे। 1909 के अधिनियम ने धर्म के आधार पर अपने अलग प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अधिकार दिया था और फिर भारत में कई जातियों ने इसी तरह अलग प्रतिनिधित्व की मांग की।
आजादी के बाद से राजनीतिक क्षेत्र में जाति का प्रभाव बढ़ा है । राजनेताओ, प्रशासन के अधिकारियों और विद्वानों ने स्वीकार किया है की जातिवाद का प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, न केवल राजनीति में बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक और अन्य क्षेत्रों में भी जातिवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है जो राष्ट्र की एकता के लिए घातक है।
जातिवाद के आधार पर उम्मीदवारों का चयन
ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव के दौरान उम्मीदवार का चयन करने में जाति के आधार पर करती है, पिछले आम चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों के चयन में जातिवाद को एक प्रमुख कारक के तौर पर बनाया है ,अधिकांश निर्वाचन क्षेत्र में चाहे वह विधानसभा ,लोकसभा ,नगर पालिका या जिला पंचायत हो, इन सभी क्षेत्र में जिस मतदाता के पास सबसे अधिक मतदाता होते हैं उस जाति के उम्मीदवार को टिकट मिलने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।
जातिवाद के आधार पर नेतृत्व
भारतीय राजनीति में जातिवाद ने राजनीतिक नेतृत्व को भी प्रभावित किया है, नेताओं का उदय और पतन जाति के आधार पर होता है, कई नेताओं ने जाति के समर्थन से अपना प्रभाव स्थाई बनाए हुए हैं। भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय दल सीधे जाति का समर्थन नहीं कर सकते हैं लेकिन क्षेत्रीय दल की राजनीति जाती आधारित होती है और अपनी वोटबैंक जाति का खुलकर समर्थन करते हैं।
जातिवाद चुनाव परिणाम को प्रभावित करता है
ज्यादातर आम चुनावो का हम विश्लेषण करें तो चुनाव परिणाम में जातिवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उम्मीदवार की जीत या हर काफी हद तक जाति आधारित प्रचार पर निर्भर होती है। उस निर्वाचन क्षेत्र में जिस जाति का बहुमत होता है ज्यादातर उसका उम्मीदवार ही चुनाव जीतता है। अभी संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों(India parliamentary result 2024) पर नजर डालें तो महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश ,हरियाणा ,राजस्थान और देश के कहीं अन्य हिस्सों के परिणाम हम देखें तो वोटिंग पैटर्न में जातिवाद साफ दिखाई दिया, ज्यादातर मतदाताओं ने राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं बल्की जातिवाद के आधार पर वोटिंग किया इसी का परिणाम है कि भाजपा जो 400 पार का नारा देती थी वह 240 पर अटक गई मगर सरकार एनडीए की बनी और तीसरी बार श्री नरेंद्र मोदी(PM Narendra modi) जी प्रधानमंत्री बने।
पंचायती राज की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण जातिवाद (Casteism)
आजादी के बाद ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज की स्थापना हुई। पंचायती राज की त्रिस्तरीय पंचायत ,पंचायत समिति और जिला परिषद चुनाव में जाति बहुत महत्वपूर्ण होती है l कभी-कभी चुनाव में जातिवाद की भावना एक भयंकर मोड़ लेती है और दंगे भड़कते हैं, जनजीवन असामान्य हो जाता है, लोग घायल होते हैं, मरते हैं। पंचायती राज की विफलता का एक महत्वपूर्ण कारण जातिवाद है।
Caste politics in hindi
देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत चुका है इसके बावजूद भी हम जातिवाद के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। जातिवाद से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र में राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती है तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हतोत्साहित करती है जाति(caste) प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये देश की एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जातिवाद राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। जातिवाद राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
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